महाकुंभ की मोनालिसा का समुदाय क्या मगरमच्छ से तेल निकालता है, चीतों से कराते थे हिरण का शिकार?

नई दिल्ली: मुगल इतिहासकार अबुल फजल की किताब 'आइन-ए-अकबरी' के अनुसार, बादशाह अकबर के दरबार में चीता पारधी या पारदी समुदाय हुआ करता था। साथ ही महल में ऐसे 1,000 प्रशिक्षित चीते थे, जो दौड़कर काले हिरण का शिकार किया करते थे। ये वही काला हिरण है, जि

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नई दिल्ली: मुगल इतिहासकार अबुल फजल की किताब 'आइन-ए-अकबरी' के अनुसार, बादशाह अकबर के दरबार में चीता पारधी या पारदी समुदाय हुआ करता था। साथ ही महल में ऐसे 1,000 प्रशिक्षित चीते थे, जो दौड़कर काले हिरण का शिकार किया करते थे। ये वही काला हिरण है, जिनके शिकार करने पर आज पूरी तरह पाबंदी है। ये चीता पारधी दक्ष शिकारी हुआ करते थे। मुगल बादशाहों के दरवार में उनकी सेवाएं सबसे तेज दौड़ने वाले चीतों को पकड़ने और उन्हें शिकार में प्रशिक्षित करने के लिए ली जाती थी। उस वक्त देश में चीते पाए जाते थे, जो बाद में भारत से विलुप्त हो गए। महाकुंभ में वायरल हुई मोनालिसा भी इसी पारधी समुदाय से आती हैं। जानते हैं चर्चा में आए इस समुदाय की अनोखी कहानी।

खरगोन की मोनालिसा आई थीं माला बेचने

मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा के किनारे बसे महेश्वर की खूबसूरत आंखों वाली मोनालिसा उर्फ मोनी महाकुंभ में माला बेचने आई थीं। मगर, वह अपनी खूबसूरती से वायरल हो गईं। वह जिस पारधी यानी पारदी समुदाय से आती हैं, वो मूल रूप से राजस्थानी राजपूत है, जो महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश समेत देश के कई हिस्सों में बस गए हैं।


चीता पारधी मुगलों के लिए करते थे शिकार

मुगल बादशाह और राजा-महाराजा अपने मनोरंजन के लिए चीतों से कृष्ण मृगों का शिकार करवाते थे, क्योंकि अकेले वो ही ऐसे शिकारी जीव थे जो कि काले हिरण को दौड़कर पकड़ने की क्षमताएं रखते थे। इन चीतों की ट्रेनिंग चीता पारधी देते थे। वहीं, फांस पारदी वे पारधी होते थे जो हिरणों को फांसने के लिए फंदों का इस्तेमाल करते थे।
Mahakumbh Mela 2025


बैल पारधी निकालते हैं तीतर जैसी आवाज

बैल पारधी बच्चे जैसे ही दुनियादारी समझना शुरू करते हैं सबसे पहले वे तीतर की हूबहू आवाज निकालने का अभ्यास शुरू कर देते हैं। कुछ तो होंठ सिकोड़कर सीधे मुंह से तीतर आवाज निकाल लेते हैं तो कुछ बांस या प्लास्टिक की नली से बनाए एक उपकरण से ऐसी आवाज निकालने में माहिर होते हैं। यह नकल इतनी असल जैसी होती है कि दूर जंगल का तीतर भी इसके जवाब में अपनी तीखी और कर्कश आवाज से आसमान गुंजा देता है।
MahaKumbh2025


अब बैल पर बैठकर सिखाया जाता है शिकार करना

पारधियों में अब सुबह होते हैं बच्चे को शिकार पर भेजा जाता है। इसके लिए वह बैल की सवारी करता है। भारत में बैल पारधी ही एकमात्र ऐसा समुदाय है जो घोड़े की तरह बैल पर सवारी करता है। खास बात यह है कि इन बैलों पर न तो जीन होती है और ना ही बैल पर कोई लगाम कसी जाती है। उन पर बैठने का तरीका भी बड़ा ही बेढब होता है।

पारधी लोग ऐसे करते हैं बैल को प्रशिक्षित, जानिए

बैल पर सवारी करने के लिए बछड़े को बचपन में ही प्रशिक्षण दिया जाता है। पहले उसकी पीठपर चादर बिछाकर चलाया फिराया जाता है फिर उसकी जगह बैल को मोटे गद्दे का आदी बनाया जाता है। यह बैल इशारे से ही सब समझता है। वह बिना चाबुक के ही सवार की बातों को समझ जाता है।

तीतर, बैल मानी जाती है महत्वपूर्ण संपत्ति

बैल पारधियों की कुल संपत्तियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रशिक्षित तीतर और यही सधा हुआ बैल होता है। यदि बैल पारधियों के पास बैल न हो तो उनकी घुमंतु जिदंगी थम कर रह जाए। अपनी पूरी घर गृहस्थी बैल पर लादे लादे बैल पारधी जीवन भर यहां से वहां भटकते रहते है। इसी बैल की आड़ में हिरणों के झुंड के करीब तक जा पहुचते हैं।
Mahakumbh ki Monalisa


इतने तरह के पारधी या पारदी, जानिए

  • गोसाई पारधी: गोसाई पारधी गैरिक वस्त्र धारण करते हैं तथा भगवा वस्त्रधारी साधुओं जैसे दिखाई देते हैं। ये हिरणों का शिकार करते हैं।
  • चीता पारधी: ये लोग कुछ सौ वर्ष पूर्व तक चीता पालते थे, किंतु अब भारत की सीमा रेखा से चीता विलुप्त हो गया है। ऐसे में अब चीता पारधी नाम का पारधियों का एक वर्ग ही शेष बचा है। जब भारत में चीता पाया जाता था, तब चीता पारधी उसे पालतू बनाकर शिकार की ट्रेनिंग देते थे।
  • भील पारधी: ये बंदूकों से शिकार किया करते थे।
  • लंगोटी पारधी: इस उपजाति में वस्त्र के नाम पर केवल लंगोटी ही पहनी जाती है।
  • टाकनकार और टाकिया पारधी: सामान्य शिकारी और हांका लगाने वाले पारधी।
  • बंदर वाला पारधी: बंदर नचाने वाले पारधी।
  • शीशी का तेल वाले पारधी: पुराने समय में मगरमच्छ का तेल निकालने वाले पारधी।
  • फांस पारधी: शिकार को जाल में पकड़ने वाले।

किसने आदिवासियों को घोषित किया अपराधी

1932 में एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल सर जॉर्ज मैक्मुन ने अपनी किताब ‘द अंडरवर्ल्ड ऑफ इंडिया’ में पारदी समेत कई जनजातीय समुदायों के बारे में लिखा-वे एकदम मैले-कुचैले, समाज की गंदगी और किसी खेत में घास चर रहे पशुओं के समान हैं। दरअसल, मैक्मुन अपनी किताब में जिन लोगों को संबोधित कर रहा था, ये वो लोग थे जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने कुख्यात ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871’ के जरिये ‘आपराधिक जनजाति’ घोषित कर दिया था।

जब 150 से अधिक जनजातियों को घोषित किया अपराधी

1871 में बने इस अधिनियम में समय-समय पर संशोधन किए गए और धीरे-धीरे लगभग 150 से भी अधिक जनजातियों को इसके तहत अपराधी घोषित कर दिया गया। पुलिस में भर्ती होने वाले जवानों को यह सिखाया जाने लगा कि ये जनजातियां पारंपरिक रूप से आपराधिक प्रकृति की रही हैं।

कुछ जनजातियों को आज भी चुकानी पड़ रही कीमत

1952 के बाद इन जनजातियों को अपराधी मानने वाला कानून तो बदला, मगर समाज और व्यवस्था का नजरिया आज भी इनके प्रति वैसा ही बना हुआ है। खासकर बावरिया, भांतु, कंजर, सांसी, छारा और पारदी तो इनमें से ऐसी जनजातियां हैं, जिन्हें आज भी इस ‘आपराधिक’ छाप की कीमत चुकानी पड़ रही है।

इन घटनाओं ने पूरे देश को हिला दिया था

2007 में बिहार के वैशाली ज़िले में नट जनजाति के दस लोगों को भीड़ ने चोर होने के आरोप में पीट-पीट कर मार डाला था। इसी तरह सितंबर 2007 में मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के चौथिया गांव में पारदियों के 350 परिवारों के घर जलाकर राख कर दिए गए थे।
MahaKumbh ki Mahakatha


घुमंतू जनजातियों के लिए बना था आयोग

लगभग 180 सालों तक देश की व्यवस्था ने इन जनजातियों को कानूनी तौर पर जन्मजात अपराधी माना है। इसके चलते धीरे-धीरे समाज में भी इन जनजातियों की पहचान अपराधियों के रूप में ही स्थापित होती चली गई। साल 2005 में तत्कालीन सरकार ने ‘विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों’ के लिये एक राष्ट्रीय आयोग (National Commission for Denotified, Nomadic and Semi-nomadic Tribes - NCDNT) का गठन किया था। इस आयोग के अध्यक्ष बालकृष्ण रेनके थे, 2008 में रेनके आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें इन जनजातियों के इतिहास से लेकर वर्तमान समय में इनकी चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की गई थी।

क्या थी रेनके आयोग की रिपोर्ट

रेनके आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘दुर्भाग्य से ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ के समाप्त होने के बाद भी इन जनजातियों को उसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं। अंग्रेजों की ओर से चलाई गई इस कुरीति के चलते आज भी समाज और पुलिस इन लोगों को शक और घृणा की ही नजर से देखती है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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